दिल्ली चुनाव 2025 | दंगाइयों को टिकट देना ओवैसी का मास्टरस्ट्रोक या विवादित राजनीति? बड़ा विश्लेषण! |Owaisi on Delhi Election

Delhi Election 2025: राजनीतिक रणनीति और लोकतंत्र की परीक्षा

Delhi Election 2025 में कई राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ चुनावी मैदान में हैं। इनमें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी शामिल है, जिसने शिफा-उर-रहमान (ओखला) और ताहिर हुसैन (मुस्तफाबाद) को उम्मीदवार बनाया है। इन दोनों उम्मीदवारों पर 2020 के दिल्ली दंगों में शामिल होने के आरोप हैं, और वे अभी कानूनी प्रक्रिया का सामना कर रहे हैं।

इस फैसले ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चाओं को जन्म दिया है। कुछ इसे लोकतांत्रिक अधिकारों के तहत एक कानूनी प्रक्रिया मान रहे हैं, तो कुछ इसे राजनीतिक ध्रुवीकरण की रणनीति कह रहे हैं।


लोकतंत्र और चुनाव लड़ने का अधिकार

भारत का संविधान हर नागरिक को चुनाव लड़ने और अपनी राजनीतिक भागीदारी का अधिकार देता है, जब तक कि वह किसी कानूनी रोक के दायरे में न हो। शिफा-उर-रहमान और ताहिर हुसैन फिलहाल कोर्ट के आदेश के तहत कस्टडी पैरोल पर हैं, जिससे उन्हें चुनाव प्रचार करने की अनुमति मिली है।

विपक्षी दलों का तर्क है कि ऐसे व्यक्तियों को टिकट देना चुनावी नैतिकता के खिलाफ है, जबकि Owaisi और AIMIM का कहना है कि जब तक किसी पर कानूनी रूप से अपराध साबित नहीं होता, तब तक उसे चुनाव लड़ने से वंचित नहीं किया जा सकता।


चुनावी प्रचार और राजनीतिक ध्रुवीकरण | Delhi Election

दिल्ली चुनाव में AIMIM प्रमुख Owaisi ने इन दोनों उम्मीदवारों के समर्थन में कई रैलियां की हैं। उनके भाषणों में यह साफ झलकता है कि वे इन प्रत्याशियों को “मजलूम” (अत्याचार सहने वाला) बताकर अपने समर्थकों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हालांकि, दिल्ली के कई हिस्सों में 2020 के दंगों की यादें अभी भी ताजा हैं। ऐसे में, जनता के एक वर्ग को यह सवाल भी परेशान कर रहा है कि क्या यह फैसला राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देगा?


विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया

अन्य राजनीतिक दल, जैसे कि आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP), AIMIM के इस फैसले की आलोचना कर रहे हैं।

  • AAP का कहना है कि ओवैसी की राजनीति भाजपा की “सांप्रदायिक राजनीति” को फायदा पहुंचा सकती है और यह ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है।
  • BJP ने इसे “दंगा आरोपियों का महिमामंडन” बताया और कहा कि यह चुनावी नैतिकता के खिलाफ है।

हालांकि, Owaisi का कहना है कि वे केवल उन लोगों की आवाज उठा रहे हैं जिन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है।


जनता के लिए बड़ा सवाल: मुद्दों की राजनीति या पहचान की राजनीति?

इस चुनाव में जनता के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे किस आधार पर वोट देंगे – विकास और प्रशासनिक मुद्दे, या फिर पहचान और भावनात्मक मुद्दे?

  • क्या मतदाता शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देंगे?
  • या फिर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और पहचान की राजनीति इस चुनाव को प्रभावित करेगी?

दिल्ली की राजनीति में यह पहला मौका नहीं है जब ऐसे संवेदनशील मुद्दे चुनावी बहस का हिस्सा बने हैं। लेकिन इस बार चुनाव में दंगा आरोपों से घिरे उम्मीदवारों की उपस्थिति इसे और भी संवेदनशील बना रही है।


चुनाव आयोग की भूमिका और निष्पक्षता

भारत का चुनाव आयोग (ECI) इस तरह की परिस्थितियों पर विशेष ध्यान देता है। यह सुनिश्चित करना आयोग की ज़िम्मेदारी है कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हों।

  • चुनाव आयोग उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि पर नजर रखता है।
  • चुनावी आचार संहिता (Model Code of Conduct) का पालन सुनिश्चित किया जाता है।
  • धार्मिक या सांप्रदायिक उकसावे को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं।

ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग इस चुनाव में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाता है।


निष्कर्ष: दिल्ली की जनता का फैसला सबसे अहम

Delhi Election 2025 केवल राजनीतिक दलों के लिए नहीं, बल्कि दिल्ली की जनता के लिए भी एक बड़ी परीक्षा है।

  1. क्या मतदाता विकास और प्रशासनिक मुद्दों को प्राथमिकता देंगे?
  2. क्या पहचान की राजनीति इस चुनाव को प्रभावित करेगी?
  3. क्या लोकतांत्रिक मूल्यों के तहत सभी प्रत्याशियों को निष्पक्ष रूप से चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा?

Delhi Election | इन सभी सवालों का जवाब 8 फरवरी को चुनावी नतीजों के साथ सामने आएगा। आखिरकार, लोकतंत्र में अंतिम फैसला जनता का ही होता है।

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