स्वर कोकिला Lata Mangeshkar: उनके जीवन का अनसुना किस्सा
Lata Mangeshkar, जिन्हें भारतीय संगीत की ‘स्वर कोकिला’ कहा जाता है, का नाम संगीत प्रेमियों के दिलों में सदा के लिए अमर हो चुका है। उनकी आवाज़ ने हिंदी फिल्मों के हर गीत को जीवंत कर दिया है, और उनके जन्मदिन, 28 सितंबर, को संगीत प्रेमी एक खास दिन के रूप में मनाते हैं।
1929 में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में जन्मीं लता मंगेशकर ने अपने सिंगिंग करियर की शुरुआत 1942 में फिल्म पहली मंगलागौर से की थी। अपनी मखमली आवाज़ से लाखों दिलों पर राज करने वाली लता मंगेशकर को बहुत कम उम्र में ही एक खास पहचान मिल गई थी।
परंतु उनकी जिंदगी में एक ऐसा हादसा भी हुआ था, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यह घटना उनके जीवन की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक थी, जब किसी ने उनकी जान लेने की कोशिश की थी। इस अनसुने किस्से को मशहूर हिंदी लेखिका पद्मा सचदेव ने अपनी किताब “ऐसा कहां से लाऊं” में उजागर किया था।
लता मंगेशकर को दिया गया स्लो पॉइजन
1962 में, जब लता मंगेशकर मात्र 33 साल की थीं, उन्हें एक दिन अचानक पेट में तेज दर्द हुआ। उन्होंने कई बार हरे रंग की उल्टियां की, और धीरे-धीरे उनका शरीर बिल्कुल निढाल हो गया। उन्हें अपने हाथ-पैर तक हिलाने में तकलीफ होने लगी और उनके शरीर में भयानक दर्द था।
स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि डॉक्टरों को बुलाना पड़ा। डॉक्टर जब आए, तो साथ में एक्स-रे मशीन और अन्य जरूरी सामान भी लेकर आए। लता मंगेशकर को दर्द के कारण बेहोश करने के लिए इंजेक्शन दिया गया, जिससे उन्हें तीन दिनों तक बेहोशी में रखा गया।
तीन दिनों तक लता मंगेशकर मौत से जूझती रहीं और करीब 10 दिनों के बाद उनकी हालत में सुधार होने लगा। जब डॉक्टरों ने पूरी जांच की, तो उन्होंने बताया कि लता जी को स्लो पॉइजन दिया गया था। यह खबर सुनकर हर कोई स्तब्ध रह गया। इस घटना के बाद उनका स्वास्थ्य लंबे समय तक खराब रहा।
कुक का अचानक गायब हो जाना
इस हादसे के दौरान Lata Mangeshkar के घर पर काम करने वाला कुक भी अचानक गायब हो गया। वह बिना अपनी तनख्वाह लिए ही कहीं चला गया। जब इस कुक की पूरी जांच की गई, तो पता चला कि उसने पहले भी कई फिल्मी सितारों के घरों में काम किया था। लेकिन उसके अचानक गायब होने से संदेह की स्थिति बन गई थी कि वह इस घटना में शामिल हो सकता है। हालांकि इस मामले में कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाया।
लता मंगेशकर की हालत और उनका संघर्ष
इस स्लो पॉइजन वाली घटना ने लता मंगेशकर को शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद कमजोर कर दिया था। वह करीब तीन महीने तक बिस्तर पर ही रहीं। उनकी आंतों में गंभीर दर्द हो रहा था, जिसके कारण उन्हें ठंडा सूप और बर्फ के टुकड़े ही दिए जाते थे। यह स्थिति उनके लिए काफी पीड़ादायक थी, पर उन्होंने अपने हौसले और धैर्य से इस कठिन समय का सामना किया।
मजरू सुल्तानपुरी की मदद
इस कठिन समय में लता मंगेशकर का साथ देने के लिए बॉलीवुड के मशहूर म्यूजिक कंपोजर मजरू सुल्तानपुरी उनके पास रोज़ाना शाम 6 बजे आया करते थे। मजरू पहले लता जी के लिए लाया हुआ खाना खुद चखते थे, ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी से बचा जा सके।
उसके बाद ही वह लता मंगेशकर को खाना खाने की अनुमति देते थे। मजरू सुल्तानपुरी सिर्फ उनके खाने का ध्यान नहीं रखते थे, बल्कि उन्हें कविताएं और कहानियां भी सुनाकर खुश रखने की कोशिश करते थे।
लता मंगेशकर और उनका संघर्ष
Lata Mangeshkar ने इस कठिन समय को याद करते हुए एक इंटरव्यू में इस घटना का जिक्र किया था। लंदन की लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर को दिए गए इंटरव्यू में लता मंगेशकर ने बताया था कि यह घटना उनके जीवन का सबसे दर्दनाक अनुभव था। इस घटना की पुष्टि उनकी छोटी बहन उषा मंगेशकर ने भी की थी।
लता मंगेशकर: एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
यह घटना लता मंगेशकर के जीवन का एक कठिन समय था, लेकिन इसने उनके हौसले को नहीं तोड़ा। वह धीरे-धीरे ठीक हुईं और फिर से अपने गायकी के सफर को शुरू किया। लता मंगेशकर की जिंदगी के इस अनसुने किस्से को जानकर हमें यह अहसास होता है कि उन्होंने सिर्फ अपनी गायकी के लिए नहीं, बल्कि अपने जीवन के हर संघर्ष के लिए भी सराहना पाई।
लता मंगेशकर का यह जीवन संघर्ष हमें यह सिखाता है कि सफलता के रास्ते में आने वाली हर मुश्किल का सामना धैर्य, हिम्मत और सकारात्मक सोच के साथ किया जा सकता है। उनकी अद्भुत गायकी और जीवन के संघर्ष की यह कहानी हमें हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।
निष्कर्ष
Lata Mangeshkar का जीवन सिर्फ उनकी संगीत यात्रा का नहीं, बल्कि कठिनाइयों और संघर्षों का भी एक बड़ा उदाहरण है। उनके जन्मदिन के मौके पर यह अनसुना किस्सा हमें याद दिलाता है कि सफलता का सफर हमेशा आसान नहीं होता, पर सही मायनों में वही लोग सफल होते हैं जो मुश्किलों का डटकर सामना करते हैं।