क्यों शशि थरूर की ‘देशभक्ति’ से कांग्रेस परेशान है? क्या थरूर कांग्रेस छोड़ेंगे?|Shashi tharoor delegation 2025

शशि थरूर बनाम कांग्रेस: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बहाने सामने आईं आंतरिक खटपट

Shashi tharoor delegation | भारत की राजनीति में जब कोई वरिष्ठ नेता अपने विचारों से पार्टी लाइन से अलग जाता है, तो वह सिर्फ बहस का विषय नहीं, बल्कि दिशा और नेतृत्व पर बड़ा प्रश्नचिन्ह बन जाता है। ऐसी ही स्थिति इन दिनों कांग्रेस और वरिष्ठ नेता शशि थरूर के बीच देखने को मिल रही है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत प्रधानमंत्री मोदी की सरकार द्वारा शशि थरूर को एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया जाना न केवल सियासी हलकों में हलचल का कारण बना, बल्कि कांग्रेस पार्टी के भीतर भी मतभेदों को उजागर कर गया।


‘ऑपरेशन सिंदूर’ क्या है?

‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक कूटनीतिक अभियान है, जिसके तहत केंद्र सरकार ने देश के सांसदों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की विदेश नीति, खासतौर पर पाकिस्तान के खिलाफ दृष्टिकोण, को स्पष्ट करने के लिए चुना। इसमें विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया ताकि यह दिखाया जा सके कि भारत की कूटनीति केवल केंद्र सरकार की नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की एकजुट सोच है।


शशि थरूर की भूमिका क्यों बनी विवाद का विषय?

शशि थरूर, जो स्वयं एक अनुभवी राजनयिक रह चुके हैं और विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं, को इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया जाना स्वाभाविक माना गया। लेकिन समस्या तब खड़ी हुई जब सरकार ने कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित नामों को दरकिनार कर खुद से थरूर का चयन किया।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और इसे “बेईमानी” बताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने कांग्रेस की सूची को नकार कर थरूर को चुनना राजनीतिक मंशा को दर्शाता है और यह अंतरदलीय सहमति की भावना को आहत करता है।


थरूर और मोदी: एक अप्रत्याशित सामंजस्य?

थरूर की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति सार्वजनिक टिप्पणियाँ पिछले कुछ समय से कांग्रेस की आधिकारिक लाइन से मेल नहीं खा रहीं। हाल ही में उन्होंने मोदी सरकार की पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीति और पहलगाम हमले पर प्रतिक्रिया की सराहना की। यह कांग्रेस के उस रुख के विपरीत था, जो अक्सर केंद्र सरकार की विदेश नीति पर आलोचना करता रहा है।

यह पहली बार नहीं है जब थरूर का मोदी सरकार के प्रति नरम रुख देखा गया हो। 2014 में उन्होंने मोदी की ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की सराहना की थी, जिसके बाद उन्हें कांग्रेस प्रवक्ता पद से हटा दिया गया था।


कांग्रेस के भीतर असंतोष | Shashi tharoor delegation

कांग्रेस के कई नेता इस बात से चिंतित हैं कि थरूर की स्वतंत्र टिप्पणियाँ पार्टी की एकता और अनुशासन को नुकसान पहुंचा सकती हैं। कांग्रेस के दृष्टिकोण से जब कोई वरिष्ठ नेता सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री की प्रशंसा करता है या पार्टी की आधिकारिक राय के विरुद्ध बयान देता है, तो इससे पार्टी की विश्वसनीयता और विचारधारा पर प्रश्न उठते हैं।


शशि थरूर की सफाई

थरूर ने स्पष्ट किया है कि जब बात “राष्ट्रीय हित” की हो, तो वे किसी भी दलगत सीमाओं में नहीं बंधते। उनका कहना है कि अगर विदेश नीति और देश की छवि को सशक्त करने का मौका मिलता है, तो वे उसमें हिस्सा लेंगे। पार्टी उनके बारे में क्या सोचती है, यह उनकी अपनी राय है – इस पर वे टिप्पणी नहीं करना चाहते।


क्या थरूर पार्टी बदल सकते हैं?

राजनीतिक हलकों में यह चर्चा गर्म है कि क्या थरूर भाजपा के करीब जा रहे हैं? हालांकि उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है, परंतु उनके बयानों और मोदी सरकार के साथ उनकी सामंजस्यपूर्ण भूमिका को देखकर यह सवाल उठना स्वाभाविक है।

हालांकि, थरूर ने कई बार कहा है कि वे कांग्रेस में ही रहकर बदलाव की उम्मीद रखते हैं। उनकी आलोचनाएँ पार्टी की नीतियों के खिलाफ नहीं, बल्कि उसे आधुनिक और विचारशील बनाने की दिशा में होती हैं। लेकिन जब ऐसे विचार सार्वजनिक रूप से सामने आते हैं, तो पार्टी नेतृत्व उन्हें अनुशासनहीनता के रूप में देखता है।


कांग्रेस के सामने चुनौती

कांग्रेस पार्टी इस समय दोहरी चुनौती का सामना कर रही है — एक तरफ उसे भाजपा से राजनीतिक लड़ाई लड़नी है और दूसरी तरफ अपने ही वरिष्ठ नेताओं के विचारों को साधना है। थरूर जैसे कद्दावर नेता की उपेक्षा करना भी कठिन है, और उन्हें खुली छूट देना भी पार्टी अनुशासन के खिलाफ हो सकता है।


निष्कर्ष

शशि थरूर और कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरियाँ आने वाले समय में एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम बन सकती हैं। थरूर जैसे वैश्विक दृष्टिकोण वाले नेता का विचारधारा से टकराव केवल एक व्यक्ति की नाराजगी नहीं, बल्कि एक पुरानी पार्टी के भीतर नए विचारों और पुराने ढांचों के बीच चल रही खींचतान को दर्शाता है।

Shashi tharoor delegation | अगर कांग्रेस इस स्थिति को सूझ-बूझ से नहीं संभालती, तो पार्टी के भीतर आत्ममंथन की आवश्यकता और बढ़ सकती है। वहीं, थरूर के लिए यह वक्त यह तय करने का हो सकता है कि वे अपनी स्वतंत्र सोच को कितना आगे ले जाना चाहते हैं — पार्टी के भीतर या बाहर।

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