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तिरुपति मंदिर के Tirupati laddu प्रसाद में पशु वसा का उपयोग: एक गंभीर विषय
हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा किए गए एक चौंकाने वाले दावे ने करोड़ों हिंदूओ एवं पूरे देश में भारी हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के शासनकाल में तिरुपति मंदिर के पवित्र लड्डू प्रसाद में घी की जगह पशु वसा का उपयोग किया गया था।
यह आरोप न केवल करोड़ों हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है, बल्कि टीटीडी की प्रतिष्ठा पर भी सवाल खड़ा करता है। हालांकि, जगन मोहन रेड्डी की पार्टी ने इस आरोप का पूरी तरह खंडन करते हुए इसे दुर्भावनापूर्ण और राजनीतिक लाभ के लिए किया गया प्रयास बताया है।
तिरुपति मंदिर और लड्डू प्रसाद की महिमा
Tirupati laddu|तिरुपति, आंध्र प्रदेश में स्थित भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर न केवल भारत के बल्कि दुनिया भर के सबसे प्रसिद्ध और पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यहाँ हर साल लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं और भगवान को अर्पित किए जाने वाले प्रसाद का आनंद लेते हैं। इस मंदिर का मुख्य प्रसाद ‘तिरुपति लड्डू’ है, जिसकी स्वाद और गुणवत्ता का कोई मुकाबला नहीं है।
यह प्रसाद पूरे भारत और विदेशों में प्रसिद्द है, और इसे पाने के लिए भक्त बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं।तिरुपति लड्डू की विशेषता इसकी खास तैयारी प्रक्रिया है। इसे मंदिर की रसोई, जिसे ‘पोटु’ कहा जाता है, जो बेहद सावधानी से तैयार किया जाता है। लड्डू को बनाने की प्रक्रिया को ‘दित्तम’ कहा जाता है, जिसमें सामग्री और उनकी मात्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है।
तिरुपति लड्डू का इतिहास और प्रसिद्धि
Tirupati laddu का इतिहास 300 से अधिक वर्षों पुराना है। 1715 में इस प्रसाद को सबसे पहले मंदिर में अर्पित किया गया था। तब से यह परंपरा निरंतर चलती आ रही है। तिरुपति लड्डू की बढ़ती लोकप्रियता और उसकी गुणवत्ता को देखते हुए, 2014 में इसे जीआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) टैग मिला था।
जिससे यह सुनिश्चित किया गया कि इस नाम से कोई और लड्डू नहीं बेच सकता।टीटीडी (तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम) प्रतिदिन लगभग 3 लाख लड्डू तैयार करता है, जिनकी वार्षिक बिक्री से लगभग 500 करोड़ रुपये की आय होती है। यह मंदिर की आर्थिक मजबूती का एक प्रमुख स्रोत है।
तिरुपति लड्डू की तैयारी प्रक्रिया
तिरुपति लड्डू की रेसिपी में बेसन, गुड़, काजू, बादाम, किशमिश और घी का उपयोग होता है। इन सामग्रियों को निश्चित मात्रा में मिलाया जाता है, जिससे लड्डू का स्वाद और उसकी शेल्फ लाइफ लंबे समय तक बरकरार रहती है। 2016 की टीटीडी रिपोर्ट के अनुसार, लड्डू की दिव्य खुशबू और स्वाद इसे विशिष्ट बनाते हैं।
लड्डू की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए टीटीडी एक अत्याधुनिक खाद्य प्रयोगशाला का उपयोग करता है, जहां हर लड्डू की सामग्री, वजन और स्वाद की जांच की जाती है। प्रत्येक लड्डू का वजन लगभग 175 ग्राम होता है और इसमें काजू, चीनी और इलायची की सही मात्रा होनी चाहिए।
Animal fat in Tirupati laddu | घी में पशु वसा की उपस्थिति का खुलासा
23 जुलाई में, एक गंभीर समस्या सामने आई जब लड्डुओं में उपयोग किए जा रहे घी की गुणवत्ता पर सवाल उठाए गए। एआर डेयरी फूड्स से प्राप्त घी में विदेशी वसा की उपस्थिति पाई गई। इसके बाद एआर डेयरी फूड्स को टीटीडी ने ब्लैकलिस्ट कर दिया। इसके बाद टीटीडी ने घी की आपूर्ति के लिए कर्नाटक मिल्क फेडरेशन का सहारा लिया, जो अब उन्हें 475 रुपये प्रति किलो की दर से घी प्रदान करता है।
तिरुपति के लड्डू में पशु वसा का उपयोग : राजनिति
हाल ही में आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने एक और गंभीर आरोप लगाया कि वाईएसआर कांग्रेस शासन के दौरान मंदिर में घी की जगह लार्ड (सुअर की चर्बी), टैलो (गाय की चर्बी) और मछली के तेल का उपयोग किया गया था। यह आरोप धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है, और इसने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया है।
23 जुलाई को, लड्डू के स्वाद को लेकर शिकायतों के बाद किए गए विश्लेषण में भी यह पाया गया कि घी में नारियल, अलसी, सरसों और कपास के तेल जैसी वनस्पति वसा भी शामिल थीं। टीटीडी ने इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए तुरंत कार्यवाही की और ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कर दिया।

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जगन मोहन रेड्डी का तत्कालीन सरकार के बचाव में बयान
वाईएसआर कांग्रेस ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। पार्टी ने कहा कि यह सब चंद्रबाबू नायडू द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए फैलाया जा रहा है और इन आरोपों का कोई आधार नहीं है। टीटीडी के नए कार्यकारी अधिकारी जे. श्यामला राव की नियुक्ति के बाद, लड्डू की गुणवत्ता को लेकर सख्त कदम उठाए गए हैं और जांच प्रक्रिया जारी है।
निष्कर्ष
Tirupati laddu न केवल एक प्रसाद है, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है। इस पर उठाए गए सवाल न केवल धार्मिक भावनाओं को आहत करते हैं, बल्कि मंदिर ट्रस्ट की प्रतिष्ठा को भी खतरे में डालते हैं। हालांकि, टीटीडी और आंध्र प्रदेश सरकार ने इस मुद्दे पर तेजी से कदम उठाए हैं, लेकिन यह देखना होगा कि इस मामले का अंतिम समाधान कब और कैसे होगा।