जम्मू में कश्मीरी पंडितों की दुकानों पर बुलडोजर: सामाजिक और राजनीतिक असर
Kashmiri Pandit : जम्मू में हाल ही में एक विवादित डिमोलिशन ड्राइव के तहत जम्मू डेवलपमेंट अथॉरिटी (JDA) ने मुठी टाउनशिप में कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit) प्रवासियों की 12 अस्थाई दुकानों को ध्वस्त कर दिया।
यह घटना कश्मीरी पंडित समुदाय के बीच गहरी नाराजगी और रोष का कारण बनी है। दुकानदारों का आरोप है कि यह कार्रवाई बिना किसी पूर्व सूचना के की गई, जिससे उनकी आजीविका का मुख्य साधन खत्म हो गया।
35 साल पुरानी दुकानें ध्वस्त
मुठी इलाके में रह रहे कश्मीरी पंडित पिछले 35 साल से इस क्षेत्र में बसे हुए हैं। कश्मीर घाटी से पलायन के बाद उन्होंने अस्थाई रूप से यहां दुकानें बनाई थीं, जिनमें दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएं बेची जाती थीं। स्थानीय निवासी कुलदीप ने बताया कि 1990 के बाद से उन्होंने इन दुकानों का निर्माण अपने खर्चे पर किया था। इन दुकानों से दूध, सब्जियां, तेल, और अन्य दैनिक जरूरतों की चीजें बेची जाती थीं।
डिमोलिशन ड्राइव के दौरान कई दुकानदारों को मात्र 10 मिनट का समय देकर अपनी दुकानें खाली करने को कहा गया। एक अन्य दुकानदार सुखदेव ने कहा कि उन्हें कभी कोई नोटिस नहीं दिया गया और अचानक सुबह उनकी दुकानें तोड़ दी गईं।
आजीविका पर संकट : Kashmiri Pandit
कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit) समुदाय के लिए यह दुकाने उनकी आर्थिक स्थिति संभालने का एकमात्र साधन थीं। इनकी दुकानें तोड़ने से उनकी आर्थिक स्थिरता पर गहरा असर पड़ा है। एक दुकानदार ने बताया कि सरकारी सहायता से उनकी दवाइयों का खर्च भी पूरा नहीं हो पाता, ऐसे में ये दुकानें ही उनकी जीविका का मुख्य सहारा थीं।
राजनीतिक विवाद
इस घटना ने राजनीतिक हलकों में भी गर्माहट पैदा कर दी है। बीजेपी और कांग्रेस ने इस मुद्दे पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किए हैं। बीजेपी ने इसे कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाने का प्रयास बताया और कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की सरकारें हमेशा कश्मीरी पंडितों के प्रति उदासीन रही हैं।
बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, “कश्मीरी पंडितों का पलायन और नरसंहार स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी त्रासदी रही है। इस तरह की घटनाएं केवल उनके घावों को और गहरा करती हैं। हम मांग करते हैं कि प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा और पुनर्वास प्रदान किया जाए।”
प्रशासन की दलीलें
जम्मू डेवलपमेंट अथॉरिटी और प्रशासन का कहना है कि ये दुकानें अवैध रूप से बनाई गई थीं। रिलीफ ऑर्गनाइजेशन के अधिकारियों ने कहा कि वे प्रभावित दुकानदारों को अन्य स्थानों पर दुकानों के लिए प्राथमिकता देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि पहले से ही कैंपों में रह रहे और दुकानें चला रहे लोगों को ही नई दुकानें आवंटित की जाएंगी।
स्थानीय समुदाय की प्रतिक्रिया
स्थानीय समुदाय के लोगों में प्रशासन के खिलाफ नाराजगी बढ़ती जा रही है। उनका कहना है कि कश्मीरी पंडितों ने पिछले तीन दशकों में अपने बलबूते पर इन दुकानों को बनाया और चलाया। ये दुकानें उनके लिए न केवल आजीविका का साधन थीं, बल्कि उनके पुनर्वास प्रयासों का एक प्रतीक भी थीं।
कश्मीरी पंडितों की मांग
कश्मीरी पंडित समुदाय ने सरकार से मांग की है कि उन्हें मुआवजा और वैकल्पिक स्थान प्रदान किया जाए। उन्होंने प्रशासन से यह भी आग्रह किया है कि भविष्य में इस तरह की कार्रवाइयों से पहले उचित नोटिस दिया जाए।
समाज और राजनीति के लिए संदेश
कश्मीरी पंडितों का पलायन और उनका संघर्ष भारतीय समाज और राजनीति के लिए हमेशा एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। यह घटना केवल उनकी चुनौतियों को और बढ़ाती है। अगर समय रहते प्रभावित लोगों को न्याय नहीं मिला, तो यह सरकार और प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करेगा।
निष्कर्ष
Kashmiri Pandit : जम्मू के मुठी इलाके में हुई इस डिमोलिशन ड्राइव ने एक बार फिर कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को उजागर किया है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे इस संवेदनशील मुद्दे को गंभीरता से लें और प्रभावित लोगों के पुनर्वास और आजीविका के साधनों को बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाएं।
यह घटना न केवल प्रशासनिक निर्णयों पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कश्मीरी पंडितों की समस्याएं आज भी खत्म नहीं हुई हैं।
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