Bapa Sitaram :भक्ति, सेवा और साधना: बजरंगदास बापा के जीवन की अनमोल गाथा

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परिचय:
Bapa Sitaram: बजरंग दास बापा, जिन्हें प्रेमपूर्वक “बापा सीताराम” कहा जाता है, भारतीय संत परंपरा के महान संतों में से एक थे। उनकी भक्ति, सेवा और आध्यात्मिकता ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। उनके जीवन की प्रत्येक घटना और उनके द्वारा दी गई शिक्षाएं आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करती हैं।

जन्म और प्रारंभिक जीवन:
बजरंग दास बापा का जन्म गुजरात के भावनगर शहर से 7km दूर अधेवाड़ा गांव के जाजरिया हनुमान मंदिर में हुआ था। उनका जन्म एक रामानंदी साधु परिवार में हुआ, जहां बचपन से ही धार्मिक वातावरण था। उनका असली नाम भक्तिराम था, उनके पिताजी का नाम हरिदास बापू था और माताजी का नाम शिवकूंवरबा था, उन्हें बचपन से ही भक्ति और सेवा का संस्कार मिला। बजरंगदास बापा का परिवार मूल रूप से राजस्थान से था जो वर्षों पहले गुजरात आए थे और गुजरात के भावनगर जिले के लाखणका स्थाई हुए थे।

गुरु से मिलन और शिक्षा:
बापा जी ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ अपने गुरु सीताराम बापू की शरण में जाकर किया। बापा जी ने दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की 11 साल की उम्र में साधु महात्माओं के संपर्क में आए। अयोध्या में उन्होंने अपने गुरु सीताराम बापू से शिष्य के तौर पर दीक्षा ली। गुरु के मार्गदर्शन में उन्होंने वेद, उपनिषद, भगवद गीता और रामचरितमानस जैसे पवित्र ग्रंथों का अध्ययन किया। उनके गुरु ने उन्हें “सीताराम” मंत्र की महिमा समझाई, जो बाद में उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया।

सीताराम मंत्र का महत्व:
बजरंग दास बापा ने “सीताराम” मंत्र को अपने जीवन का मुख्य आधार बनाया। इस मंत्र का जाप करते हुए उन्होंने भगवान राम की अनन्य भक्ति की। बापा जी का मानना था कि इस मंत्र के जाप से आत्मा को शांति और मानसिक शुद्धता प्राप्त होती है।

आश्रम की स्थापना:
गुरु के आदेश पर उन्होंने भारत भर में विचरण शुरू किया। सन १९४१ में विचरण(प्रवास) के दौरान जब भावनगर के बगदाना गांव में आना हुआ तब बापा जी की उम्र ४१ साल की थी,1941 में बापा बगदाना आये।आश्रम की स्थापना 1951 में हुई थी। नि:शुल्क अन्नक्षेत्र की शुरुआत 1959 में हुई.1960 में भूदान हवन किया।बजरंगदास बापा ने करुणा ,निस्वार्थसेवा और भूखों को खाना खिलाने का मंत्र जीवन में सिद्ध किया और बगदाना आश्रम को स्थापित किया। आज दुनिया भर में प्रसिद्ध है। आज सौराष्ट्र के किसी भी गांव में बजरंगदास बापा के नाम की एक छोटी सी मढूली गांव के प्रवेश द्वार पर मिल जाती है। बजरंगदास बापा के द्वारा अपने जीवन में अनेक चमत्कारों द्वारा भक्तों के कष्ट दूर करने के अनेक उदाहरण आज भी व्यापक रूप लोगो में चर्चित हैं। बगदाना में हर साल दो त्योहार मनाए जाते हैं, एक बजरंगदासबापा की पुण्य तिथि, जो पौष वद के चार के दिन मनाई जाती है और दूसरा त्योहार आषाढ़ सुद 15 यानी गुरु पूर्णिमा के दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इन त्योहारों के दौरान बजरंगदास बापा के लाखों समर्पित भक्त उमड़ते हैं लेकिन बापा का कोई भी भक्त प्रसादी का लाभ उठाए बिना नहीं लौटता। सभी भक्त वहां बापा का महाप्रसाद भी ग्रहण करते हैं और यह महाप्रसाद प्रतिदिन पूरे दिन चलता रहता है।

बजरंग दास बापा को राष्ट्रीय संत की उपाधि प्राप्त हुई

1962 में आश्रम की नीलामी की गई और भारत और चीन के बीच युद्ध के दौरान सेना की मदद की गई। 1965 में आश्रम की दोबारा नीलामी हुई और भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान सेना को मदद मिली। इसके अलावा 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान उन्होंने आश्रम की नीलामी करके सेना की मदद की। तब उनको राष्ट्रीय संत की उपाधि दी गई थी। समाज सेवा के साथ राष्ट्रसेवा में भी हमेशा समर्पित रहते थे।

अयोध्या में भी बजरंगदास बापा के गुरु आश्रम की निशुल्क भोजन सेवा:

गुरु आश्रम बगदाना ने 29 जनवरी को संत श्री बजरंगदास बापा (बापसीताराम) की पुण्य तिथि के अवसर पर राम जन्मभूमि अयोध्या में ‘बापा सीताराम’ अन्नक्षेत्र की शुरुआत की है। सोमवार (29 जनवरी २०२४) से अयोध्या में बापा सीताराम अन्नक्षेत्र का उद्घाटन हो गया है। जहां राम भक्तों को सुबह, दोपहर और शाम तीनों समय महाप्रसाद का नि:शुल्क वितरण किया जाएगा। यह खाद्य क्षेत्र सरकार की विशेष मंजूरी के बाद शुरू किया गया है.

निधन:
भारत के इतिहास में एक धर्मनिष्ठ एवं राष्ट्रीय संत श्री बजरंगदास बापा का पोष वद चोथ के दिन ईश्वर के चरणों में विराम हुआ था। उस दिन बापा के बिना बापा की मढूली सूनी हो गयी और उस दिन पूरा बगदाना गांव, बगद नदी, जंगल के जंगल भी खामोश हो गए. परिंदे की हलचल भी रुक गई थी..!! लेकिन बजरंगदास बापा आज भी लोगों के दिल और आस्था में जीवित है। बगदाना धाम धीरे-धीरे प्रसिद्ध होता जा रहा है जहां प्रतिदिन निशुल्क भोजन सेवा आज भी जारी है। भक्त बापा के दरबार में मन्नत लेकर जाते हैं और वास्तव में बापा भी भक्तों की मन्नत पूरी करते हैं। उनके निधन के बाद भी उनके अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं और सिद्धांतों का पालन जारी रखा और समाज सेवा में लगे रहे।

Bapa sitaram:बजरंग दास बापा “सीताराम” का जीवन एक प्रेरणादायक गाथा है। उनकी भक्ति, सेवा और शिक्षाएं आज भी समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची भक्ति और सेवा में ही जीवन की सार्थकता है। बापा जी के दिखाए मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को समृद्ध और समाज एवं परिवार को बेहतर बना सकते हैं।

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