Maharashtra Election 2024: “बंटेंगे तो कटेंगे” नारा और राजनीतिक रणनीति
महाराष्ट्र और झारखंड के आगामी चुनावों में “बंटेंगे तो कटेंगे” नारा एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। इस नारे का इस्तेमाल बीजेपी द्वारा हिन्दू समाज को जोड़ने और वोट बैंक की राजनीति पर प्रहार करने के रूप में देखा जा रहा है। यह नारा योगी आदित्यनाथ ने दिया है, जिसको बीजेपी और RSS ने समर्थन दिया है।
विपक्ष का कहना है कि यह नारा समाज में विभाजन और नफरत फैलाने का काम करता है, जबकि बीजेपी इसे विकास और एकता का प्रतीक मानती है। इस लेख में हम इस नारे के पीछे के कारण, इसके प्रभाव, और राजनीतिक पार्टियों की प्रतिक्रिया पर चर्चा करेंगे।
Maharashtra Election 2024 : “बंटेंगे तो कटेंगे” का क्या है अर्थ?
“बंटेंगे तो कटेंगे” का अर्थ है कि जब लोग आपस में बंट जाएंगे, तो उनका विकास रुक जाएगा और वे नुकसान में रहेंगे। बीजेपी ने इसे अपने चुनावी एजेंडा का हिस्सा बना लिया है, ताकि जनता को यह समझाया जा सके कि हिन्दू समाज में विभाजन से केवल नुकसान ही होगा।
इस नारे का उपयोग बीजेपी ने हिंदू समाज में एकता और भाईचारे के प्रतीक के रूप में किया है, जबकि विपक्ष ने इसे नफरत फैलाने की रणनीति बताया है।
बीजेपी का पक्ष
Maharashtra Election 2024 : बीजेपी का मानना है कि “बंटेंगे तो कटेंगे” एक चेतावनी है कि समाज में विभाजनकारी राजनीति से देश का विकास रुक सकता है। बीजेपी नेता इसे विकास और एकता का संदेश मानते हैं।
पार्टी का कहना है कि वह महाराष्ट्र और झारखंड में विकास के रथ को आगे बढ़ाना चाहती है, और यह नारा उनके इसी उद्देश्य को दर्शाता है। बीजेपी का यह भी कहना है कि विपक्ष भ्रमित करने की राजनीति कर रहा है, और इस नारे का विरोध उसी भ्रम के कारण किया जा रहा है।
विपक्ष का पक्ष
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों का कहना है कि “बंटेंगे तो कटेंगे” नारा समाज में नफरत फैलाने का काम कर रहा है। उनका दावा है कि बीजेपी इस नारे का इस्तेमाल करके विभाजनकारी राजनीति कर रही है और इसे चुनावी फायदे के लिए भुना रही है। समाजवादी पार्टी ने इसके जवाब में “ना बटेंगे, ना कटेंगे” का नया नारा दिया है और कहा है कि 2027 तक नफरत फैलाने वालों को सत्ता से हटाया जाएगा।
नारे का सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ
बीजेपी ने महाराष्ट्र के सांस्कृतिक प्रतीक छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी नगर का नामकरण किया है। बीजेपी का कहना है कि यह उनके सांस्कृतिक गौरव का सम्मान करने का प्रतीक है। इसके विपरीत, विपक्ष इसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देख रहा है और इसे सांप्रदायिक विभाजन का प्रयास मानता है।
बीजेपी ने हरियाणा चुनाव में भी इसी तरह के नारों का उपयोग किया था, जिसका असर हरियाणा में दिखाई दिया था। हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस नारे का इस्तेमाल किया, और वहां पर बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा।
क्या यह बीजेपी का चुनावी एजेंडा है?
Maharashtra Election 2024 : बीजेपी इस नारे का प्रचार कर रही है, लेकिन उसका कहना है कि यह नारा किसी स्वतंत्र गीतकार द्वारा रचा गया है, जिसे जनता ने पसंद किया है।
बीजेपी के नेता इस नारे का समर्थन करते हैं, लेकिन इसे सीधे तौर पर पार्टी के चुनावी एजेंडा का हिस्सा मानने से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि यह सिर्फ जनता की सोच को दर्शाने का एक तरीका है, जो समाज में बंटवारे की राजनीति के खिलाफ है।
विपक्ष की रणनीति और कांग्रेस का नारा
विपक्ष ने बीजेपी के इस नारे के खिलाफ अपने अलग नारे गढ़े हैं। कांग्रेस ने “मोहब्बत की दुकान” का नारा दिया है, जो उनके नेता राहुल गांधी की “भारत जोड़ो यात्रा” का हिस्सा था। कांग्रेस का कहना है कि वे नफरत का जवाब मोहब्बत से देंगे। कांग्रेस का मानना है कि राष्ट्र तभी सशक्त हो सकता है जब हम एक रहें और सांप्रदायिकता से बचें।
समाजवादी पार्टी ने भी बीजेपी के इस नारे का विरोध किया है और 2027 तक नफरत फैलाने वालों को सत्ता से हटाने का संकल्प लिया है। उनका कहना है कि बीजेपी की नीतियों से समाज में असमानता और असंतोष फैल रहा है।
राजनीतिक पार्टियों के बीच तीखी बयानबाजी
बीजेपी और विपक्ष के बीच इस नारे को लेकर बयानबाजी तेज हो गई है। बीजेपी नेता इसे जनता की आवाज बताते हैं, जबकि विपक्षी नेता इसे समाज में नफरत फैलाने वाला मानते हैं।
शिवपाल यादव और अन्य विपक्षी नेताओं ने बीजेपी पर ओबीसी, दलित, और अन्य समुदायों को बांटने का आरोप लगाया है। विपक्षी दलों का कहना है कि बीजेपी के नेता और प्रवक्ता समाज को बांटने का प्रयास कर रहे हैं, और इससे देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है।
चुनावी प्रभाव
हरियाणा विधानसभा चुनाव में “बंटेंगे तो कटेंगे” नारे ने बीजेपी को सत्ता में लाने में मदद की थी। यह नारा बीजेपी के प्रचार का हिस्सा था और इसे जनता ने पसंद किया। बीजेपी का मानना है कि महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों में भी यह नारा उन्हें सफलता दिला सकता है।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र और झारखंड के आगामी चुनावों में “बंटेंगे तो कटेंगे” नारा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। बीजेपी इसे एकता और विकास का प्रतीक मानती है, जबकि विपक्ष इसे नफरत फैलाने का माध्यम बता रहा है। राजनीतिक दलों के बीच इस नारे को लेकर मतभेद हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस चुनावी माहौल में यह नारा लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
Maharashtra Election 2024 में इस नारे का क्या प्रभाव पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी। क्या यह नारा बीजेपी को सफलता दिलाएगा या विपक्ष का नया नारा “ना बटेंगे, ना कटेंगे” अधिक लोकप्रिय होगा, यह चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा।