क्या Nitish Kumar का केंद्र से समर्थन वापस लेना तय है?
Nitish Kumar : क्या ये सच है कि नीतिश बाबू फिर पलटी मारेंगे? लेकिन कब पलटें कहा नहीं जा सकता, चंद इत्तेफाकों की वजह से साजिश तो होती ही है। बिहार विधानसभा में मंगलवार को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुलाकात हुई। यह मुलाकात अचानक नहीं, बल्कि योजनाबद्ध थी। मौका था राज्य सूचना आयोग में सूचना आयोग की नियुक्ति पर मंत्रणा का। सूचना आयुक्त के चयन में मुख्यमंत्री और विपक्ष के बीच सहमति जरूरी है। शायद दोनों नेता पहले ही किसी समझौते पर पहुंच चुके हैं।
लेकिन, राजनीतिक गलियारों में सूचना आयुक्त के संभावित नामों पर चर्चा नहीं हो रही है। एक नई राजनीतिक लहर आने की चर्चा है। अनुमान के लिए अलग-अलग लिंक संलग्न करने होंगे। तो लिंक भी जोड़े जा रहे हैं। एक तरफ नीतीश-तेजस्वी की बैठक चल रही थी और दूसरी ओर लालू यादव ने विधायकों को बैठक के लिए बुलाया। बैठक में उपस्थिति अनिवार्य है। विधायकों के साथ विधान परिषद सदस्य और विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी एवं पूर्व विधायक भी मौजूद रहेंगे। सिंगापुर में स्वास्थ्य जांच कराकर लौटे लालू के लिए जल्दबाजी में बुलाई गई इस बैठक की जरूरत और महत्व मीडिया और राजनीतिज्ञ लोग आंकने लगे हैं।
कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या नीतीश कुमार ने फिर से गठबंधन बदलने का फैसला किया है? इस बीच तेजस्वी की नीतीश से सार्थक मुलाकात ने सस्पेंस बढ़ा दिया है। लोग नीतीश के पलटी मारने के कयास लगा रहे हैं क्योंकि 2022 में तेजस्वी और नीतीश के बीच इसी तरह की एक-दो मुलाकातें हो चुकी हैं। जिसके बाद राज्य की राजनीतिक स्थिति बदल गई।
जातीय जनगणना की मांग को लेकर तेजस्वी ने की नीतीश से की मुलाकात, नीतीश ने भी उनकी मांग को वाजिब माना, इस संबंध में एक और बैठक भी हुई। फिर एक-दूसरे के घर आने-जाने का सिलसिला शुरू हुआ और एनडीए की महागठबंधन सरकार अस्तित्व में आई। राजनीतिक रूप से समझदार लोगों का तर्क है कि जब दो राजनेता मिलते हैं तो वे एक-दूसरे की जानकारी नहीं मांगते बल्कि इशारों-इशारों में भी राजनीतिक बातें की जाती हैं।
यदि दिमाग के विचार एक साथ आते हैं, तो नेता भविष्य के लिए योजना बना सकते हैं। इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच सकारात्मक मुलाकात कुछ नया रूप लेकर सामने आएंगी।
इस बीच बीजेपी ने भी दिन भर की गतिविधियों का सस्पेंस बढ़ा दिया है। बीजेपी ने भी मंगलवार को अपने विधायकों और सांसदों के साथ बैठक की। बताया गया कि यह बैठक सदस्यता अभियान को लेकर की गयी थी। लेकिन जिस तरह से केंद्रीय मंत्री, सांसद, विधायक और विधान परिषद के सदस्य जुटे थे, उससे सबके कान खड़े हो गये. लोग इसे तेजस्वी और नीतीश की मुलाकात की इनसाइड स्टोरी से भी जोड़कर देख रहे हैं. यह तो तय है कि पलटू चाचा एक बार फिर वार करेंगे, लेकिन कब करेंगे, यह कहना संभव नहीं है।
Nitish Kumar और नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति के दो महत्वपूर्ण नेता हैं, जिन्होंने समय के साथ अलग-अलग राजनीतिक गठबंधनों और हालातो का सामना किया है। बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने राज्य में काफी सराहनीय कार्य किए हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का देशव्यापी प्रभाव है।
अतीत में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच मिले-जुले रिश्ते रहे हैं. 2013 में, नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होने का फैसला किया क्योंकि नरेंद्र मोदी को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया था। इसी तनाव के बीच बिहार एवं केंद्र की राजनीतिक दिशा में नीतीश कुमार और मोदी अलग हो गए. हालाँकि 2017 में, कुमार फिर से एनडीए में शामिल हो गए, फिर 2022 में एनडीए से अलग हो गए और वापस 2024 में एनडीए में शामिल होकर लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ लड़े जो उनके राजनीतिक गठबंधन की गतिशीलता का संकेत है।
कोरोना महामारी, लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर दोनों नेताओं के बीच संबंध लंबे समय से सौहार्दपूर्ण रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से उनके बीच तनाव की अटकलें तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्र सरकार की नीतियों के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं, हाल ही में वक्फ बोर्ड बिल में दोनो पार्टी में मतभेद है, जिससे राजनीतिक मंच पर कुछ बड़े बदलाव होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। हालाँकि, इन संबंधों की भविष्य की दिशा स्थिति और राजनीतिक प्रावधानों पर निर्भर करेगी। बिहार की अंदरूनी राजनीति और देश के दिग्गज नेताओं से जुड़े हालात इन दोनों नेताओं की राजनीतिक गति तय करेंगे.
Nitish Kumar अपना मन और पाला बदलने के लिए जाने जाते हैं और ये बात बीजेपी भी जानती है। नीतीश को यह भी एहसास है कि भाजपा के साथ बहुत लंबे समय तक रहने से उनकी अपनी पार्टी के कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है। भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल सभी क्षेत्रीय दलों को इस खतरे का सामना करना पड़ा है। नीतीश कुमार फायदा उठाकर पलट जाएंगे या एनडीए में बने रहेंगे यह आने वाला वक्त ही बताएगा।