डरना हो तो… पुरानी हवेली में आ जाना: रामसे ब्रदर्स और भारतीय हॉरर सिनेमा की कहानी
Ramsay Brothers horror films : रामसे ब्रदर्स का नाम भारतीय सिनेमा में हॉरर फिल्मों के पर्याय के रूप में देखा जाता है। उनकी फिल्मों का खौफ आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में बसा हुआ है। इस लेख में हम रामसे ब्रदर्स की कहानी को विस्तार से जानेंगे, कि कैसे एक साधारण परिवार ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में डर की नई परिभाषा गढ़ी और कैसे उनकी पुरानी हवेली जैसी फिल्में डराने का पर्याय बन गईं।
बंटवारे के बाद सिनेमा की दुनिया में कदम : Ramsay Brothers horror films
सन् 1947 में देश का बंटवारा हुआ, और इसी दौरान फतेहचंद रामसिंघानी उर्फ रामसे अपने सात बेटों और दो बेटियों के साथ बंबई (अब मुंबई) शिफ्ट हो गए। यहाँ उन्होंने अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लैमिंगटन रोड पर इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स की दुकान खोली, जिसमें मर्फी रेडियो का प्रोडक्ट था। हालांकि, उनकी दुकान ने कोई खास सफलता नहीं पाई।
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फतेहचंद का सिनेमा के प्रति झुकाव बढ़ता गया और 1954 में उन्होंने “शहीद ए आज़म भगत सिंह” फिल्म में निवेश किया, लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। दस साल बाद, 1963 में उन्होंने पृथ्वीराज कपूर के साथ “रुस्तम सोहराब” बनाई, जिससे कुछ मुनाफा हुआ और उनके परिवार को थोड़ी राहत मिली।
डर की दुनिया का बिजनेस आइडिया
सात साल बाद, 1970 में एक घटना ने रामसे ब्रदर्स को हॉरर सिनेमा के क्षेत्र में कदम रखने की प्रेरणा दी। “एक नन्ही मुन्नी सी लड़की” फिल्म में श्याम और तुलसी ने एक सीन देखा जिसमें पृथ्वीराज कपूर ने डरावने मास्क और कॉस्ट्यूम पहने थे। दर्शकों की प्रतिक्रिया देखकर रामसे ब्रदर्स को डर के बिजनेस का आइडिया मिला।
रामसे ब्रदर्स ने जोसेफ वी. मैस्सेली की किताब “फाइव सीज ऑफ सिनेमैटोग्राफी” पढ़कर फिल्म निर्माण के गुर सीखे। इस किताब का अध्ययन करने के बाद वे “हॉरर” के विशेषज्ञ बन गए और इंडस्ट्री में खौफ का माहौल लाने की तैयारी करने लगे।
रामसे ब्रदर्स का हॉरर बिजनेस: “जमीन के दो गज नीचे”
फतेहचंद ने बिमल रॉय से “दो बीघा जमीन” खरीदी थी, जिसे रामसे भाइयों ने फिल्म निर्माण में प्रयोग करने की सोची। 1972 में मात्र साढ़े तीन लाख रुपये से “जमीन के दो गज नीचे” फिल्म का निर्माण शुरू हुआ। उन्होंने महाबलेश्वर में एक गेस्ट हाउस किराए पर लिया और वहां शूटिंग की शुरुआत की। फिल्म में हॉरर के साथ थोड़ा सा सेक्सी और रोमांटिक तड़का डालकर रामसे ब्रदर्स ने कम बजट में सिनेमा प्रेमियों का ध्यान खींचा।
इस फिल्म के निर्माण के दौरान असली लाश मिलने की खबर ने पूरी टीम को डरा दिया था, लेकिन इस डर को भी उन्होंने फिल्म के प्रमोशन के लिए भुनाया। फिल्म ने रातों-रात पैंतालीस लाख रुपये का मुनाफा कमाया और भारतीय सिनेमा में हॉरर फिल्मों के लिए एक नई शुरुआत की। इसके बाद, रामसे ब्रदर्स का हॉरर फिल्मों में एक अलग ही पहचान बनने लगी।
“हवेली” से “पुराना मंदिर” तक का सफर
फिल्म “जमीन के दो गज नीचे” की सफलता के बाद रामसे ब्रदर्स ने अपनी खुद की “हवेली” खरीदी और इसे 1978 में “दरवाजा” नाम की फिल्म से खोल दिया। इसके बाद एक के बाद एक फिल्मों के माध्यम से उन्होंने दर्शकों को डराने का सिलसिला जारी रखा। 1980 में उन्होंने “गेस्ट हाउस”, और “पुरानी हवेली” जैसी फिल्में बनाईं, जो दर्शकों में काफी चर्चित रहीं। उनकी फिल्मों की सेटिंग्स हमेशा वीरान हवेलियों, पुराने मंदिरों और सुनसान जगहों पर होती थीं, जो उनके फिल्मों को और डरावना बनाती थीं।
हॉरर फिल्मों में “बी” ग्रेड का टैग
रामसे ब्रदर्स की फिल्मों को बॉलीवुड में हमेशा “बी” ग्रेड का टैग दिया गया, जबकि “ए” ग्रेड अभिनेता और फिल्म निर्माताओं ने उनके काम को कम आँका। परंतु रामसे ब्रदर्स ने इस आलोचना को कभी अपने रास्ते का रुकावट नहीं बनने दिया। उनके पास एक फिक्स्ड ऑडियंस थी, जो उनके यूनिक हॉरर कंटेंट को पसंद करती थी।
उनके क्रू में परिवार के सदस्य ही होते थे, और अक्सर भोजन तक उनकी लेडीज बनाती थीं, जिससे फिल्मों में एक पारिवारिक माहौल बना रहता। इस सीमित बजट और साधारण टीम के बावजूद, रामसे ब्रदर्स की फिल्में दर्शकों में डर का माहौल बनाती थीं और इंडियन हॉरर का एक खास पहचान बन चुकी थीं।
टेलीविजन में कदम और “ज़ी हॉरर शो”
जब बॉलीवुड में कई फिल्म निर्माताओं ने रामसे ब्रदर्स की नकल करनी शुरू की, तो 1993 में उन्होंने टेलीविजन की ओर रुख किया और सुभाष चंद्रा के साथ मिलकर “ज़ी हॉरर शो” की शुरुआत की। यह शो नौ सालों तक चलता रहा और टेलीविजन पर भी रामसे ब्रदर्स ने डर का माहौल बनाए रखा।
उनकी आखिरी फिल्म “नेबर्स” 2014 में आई, लेकिन इसे ज्यादा सफलता नहीं मिली। इसके बावजूद, रामसे ब्रदर्स का नाम भारतीय हॉरर सिनेमा में हमेशा अमर रहेगा।
रामसे ब्रदर्स का अनोखा योगदान
रामसे ब्रदर्स ने भारतीय सिनेमा में हॉरर का जो चलन शुरू किया, वह आज भी कायम है। उन्होंने कम बजट में दर्शकों को डराने का हुनर दिखाया और हॉरर फिल्मों को मुख्यधारा में लाने का साहस किया। उनके बनाए फॉर्मूले का आज कई फिल्म निर्माता जैसे विक्रम भट्ट बखूबी प्रयोग कर रहे हैं।
आज के दौर में जब अजय देवगन जैसे “ए” ग्रेड अभिनेता रामसे ब्रदर्स पर बायोपिक बनाने की सोच रहे हैं, तो यह उनके योगदान को सम्मान देने जैसा है। रामसे ब्रदर्स ने भारतीय सिनेमा को सस्ते में डर बेचा, लेकिन उनके फिल्मों का प्रभाव दर्शकों के दिलों में आज भी जिंदा है।
निष्कर्ष
Ramsay Brothers horror films : रामसे ब्रदर्स की कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी भी सफलता के लिए जुनून और कड़ी मेहनत आवश्यक है। उन्होंने भारतीय सिनेमा में हॉरर को पहचान दिलाई और साबित किया कि डर का अपना एक अलग ही आकर्षण होता है।