“श्री इंद्रभारती बापू के बारे में जानें, कैसे उन्होंने दान में मिली 15 करोड़ की जमीन वापस अपने शिष्य को लौटाकर पेश की मानवता की मिसाल?” | Indrabharti Bapu

श्री इंद्रभारती बापू: भारतीय संत परंपरा और राष्ट्रभक्ति के अनमोल रत्न

Indrabharti Bapu |भारत की संत परंपरा में ऐसे अनगिनत महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने मानवता, धर्म और राष्ट्र की सेवा को अपना जीवन समर्पित किया। इन महान विभूतियों में श्री इंद्रभारती बापू का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित श्री रूद्रेश्वर जागीर भारती आश्रम के महंत, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री इंद्रभारती बापू एक ऐसे संत हैं, जिन्होंने अध्यात्म और राष्ट्रप्रेम का अदभुत संगम स्थापित किया है।

दान में मिली भूमि लौटाकर पेश की मानवता की मिसाल: श्री इंद्रभारती बापू

भारतीय संत परंपरा न केवल धर्म और अध्यात्म का प्रतीक है, बल्कि मानवता और उदारता की अद्वितीय मिसाल भी है। इस परंपरा के महान संत श्री इंद्रभारती बापू ने एक ऐसा कार्य किया, जिसने लाखों लोगों को करुणा, परोपकार और मानव सेवा की नई राह दिखाई।

घटना का प्रारंभ: 27 बीघा भूमि का दान

2004 में, राजकोट के प्रसिद्ध उद्योगपति रसिकलाल एंड कंपनी के मुखिया ने अपनी 27 बीघा जमीन बापू को दान में दी। यह जमीन सासण गिर क्षेत्र में स्थित थी, जिसकी बाजार कीमत उस समय करोड़ों में थी।

श्री इंद्रभारती बापू ने इस भूमि को न केवल स्वीकार किया, बल्कि उस पर एक आश्रम और बाग-बगीचा विकसित किया। यह आश्रम साधु-संतों का निवास स्थल बन गया और वहां पर 500 से अधिक आम के पेड़ लगाए गए।


व्यापारी का आर्थिक संकट

वर्ष 2006 में, रसिकलाल एंड कंपनी के मुखिया को व्यापार में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। परिस्थितियां इतनी विकट हो गईं कि उनका परिवार कर्ज में डूब गया और संपत्तियां बेचने को मजबूर हो गया।

जब इस संकट की जानकारी श्री इंद्रभारती बापू को मिली, तो उन्होंने तुरंत इस समस्या का समाधान करने का निश्चय किया।


दान की गई भूमि वापस लौटाने का निर्णय : Indrabharti Bapu

श्रावण मास के अंतिम दिनों में, बापू ने दान की गई जमीन पर लोकसंगीत और संतवाणी का भव्य आयोजन किया। इस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने एक ऐतिहासिक घोषणा की।

बापू ने माइक पर कहा:
“2007 में इस भूमि पर मैंने अनुष्ठान किया था। रसिकलाल एंड कंपनी के मुखिया परिवार ने यह भूमि मुझे दान में सौंपी थी। अब, उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इसलिए, मैं यह भूमि इन्हीं को एक शिष्य के रूप में वापस लौटाता हूं।”

यह घोषणा सुनकर वहां उपस्थित हर व्यक्ति भावविभोर हो गया। यह केवल भूमि लौटाने की बात नहीं थी; यह एक संत की दया, करुणा और मानवता की अद्वितीय मिसाल थी।


मानवता और सेवा का आदर्श

श्री इंद्रभारती बापू ने इस घटना के माध्यम से यह संदेश दिया कि संत का कर्तव्य केवल अध्यात्म तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज की समस्याओं को सुलझाना और मानवता की सेवा करना भी है।

यह कार्य एक सच्चे संत की पहचान है:

  • बापू ने “तेरा तुझको अर्पण” के सिद्धांत को “तेरा तुझको रिटर्न” में बदलते हुए एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया।
  • यह घटना यह सिद्ध करती है कि बापू केवल एक संत नहीं हैं, बल्कि एक आधुनिक युग के प्रेरणास्त्रोत हैं।

संपत्ति का वर्तमान मूल्य और महत्व

आज की तारीख में उस भूमि की कीमत 15 करोड़ रुपये से अधिक है। लेकिन बापू के लिए उसका मूल्य केवल उसकी भौतिक संपत्ति तक सीमित नहीं था। वह भूमि एक भक्त का समर्पण थी, जिसे बापू ने जरूरत पड़ने पर उसे वापस लौटाकर मानवता का दीपक प्रज्वलित किया।

संदेश

श्री इंद्रभारती बापू का यह कार्य हमें सिखाता है कि धन, संपत्ति और अधिकार से अधिक मूल्यवान हैं दया, करुणा और सेवा। यह घटना समाज में संत परंपरा की महत्ता और उनकी जीवनशैली का आदर्श रूप प्रस्तुत करती है।

“धर्म से पहले राष्ट्र” की भावना के साथ जीने वाले श्री इंद्रभारती बापू ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्चा संत वही है, जो अपने कार्यों से समाज को प्रेरणा दे।

ॐ नमो नारायण।

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