महाराष्ट्र में आदिवासी विधायकों का विरोध प्रदर्शन: उपमुख्यमंत्री अजीत पवार गुट के विधायक नरहरी झिरवाल की घटना
Maharashtra Deputy Speaker Jumps Off | महाराष्ट्र की राजनीति में हाल ही में एक सनसनीखेज घटना घटी, जब उपमुख्यमंत्री अजीत पवार गुट के विधायक और विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरी झिरवाल ने धनगर समाज को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने के विरोध में मंत्रालय की तीसरी मंजिल से कूदने की कोशिश की।
हालांकि, सौभाग्यवश वे नीचे नहीं गिरे, बल्कि बीच में लगी सुरक्षा जाली पर अटक गए, जिससे उनकी जान बच गई। इस घटना ने राज्य में आदिवासी मुद्दों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है और राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
धनगर समाज को एसटी का दर्जा: विवाद का कारण
Maharashtra ncp ajit pawar : धनगर समाज को एसटी का दर्जा दिए जाने का मुद्दा महाराष्ट्र में लंबे समय से विवाद का कारण बना हुआ है। राज्य में धनगर समाज की मांग रही है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति के तहत लाभ मिले, जिससे उन्हें शिक्षा, नौकरी, और अन्य सरकारी योजनाओं में विशेष अवसर प्राप्त हों।
हालांकि, इस मांग का आदिवासी समुदाय के कुछ वर्गों द्वारा कड़ा विरोध किया गया है। आदिवासी विधायकों का मानना है कि अगर धनगर समाज को एसटी का दर्जा दिया जाता है, तो इससे उनके आरक्षित अधिकारों और लाभों पर प्रभाव पड़ेगा।
Narhari Zirwal इसी विरोध के चलते इस कठोर कदम उठाने पर मजबूर हुए। वे आदिवासी समाज के महत्वपूर्ण प्रतिनिधि माने जाते हैं और आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
आंदोलन और मंत्रालय में नारेबाजी
यह घटना तब घटी जब आदिवासी समाज के विधायकों ने महाराष्ट्र के मंत्रालय में प्रदर्शन किया। इस दौरान विधायकों ने मंत्रालय की दूसरी मंजिल पर लगी सुरक्षा जाली पर चढ़कर नारेबाजी शुरू कर दी। वे धनगर समाज को एसटी का दर्जा देने के खिलाफ अपने विरोध को प्रकट कर रहे थे। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की और विधायकों को जाली से हटाया। लेकिन इस घटना ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि आदिवासी समुदाय की मांगों को किस तरह से सुलझाया जाएगा।
Narhari Zirwal की भूमिका और संघर्ष |Maharashtra Deputy Speaker Jumps Off
विधानसभा के उपाध्यक्ष Narhari Zirwal, जो एनसीपी के वरिष्ठ नेता हैं, आदिवासी समुदाय के एक प्रमुख नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं। वे पिछले कुछ समय से आदिवासी समुदाय के मुद्दों को लेकर सक्रिय हैं और दो बार मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से भी मिल चुके हैं।
झिरवाल ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि वे आदिवासी समुदाय की मांगों को ध्यान में रखें और उनकी समस्याओं का समाधान निकालें। उनका यह भी कहना है कि अगर मुख्यमंत्री उनकी बात नहीं सुनते हैं, तो उनके पास एक वैकल्पिक योजना (प्लान बी) तैयार है।
यह संघर्ष तब और गहरा गया जब आदिवासी विधायकों को मुख्यमंत्री से मिलने के लिए 2 अक्टूबर को सात घंटे तक इंतजार करना पड़ा। इसके बावजूद वे मुख्यमंत्री से मुलाकात नहीं कर सके, जिससे विधायकों में गहरा असंतोष फैल गया। इसी निराशा के चलते आदिवासी विधायकों ने मंत्रालय में नारेबाजी और प्रदर्शन किया, जिसके बाद कुछ विधायकों ने मंत्रालय की जाली पर कूदने का प्रयास किया।
मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आदिवासी विधायकों के साथ बातचीत की, लेकिन उनकी मांगों का तुरंत समाधान नहीं निकल पाया। मुख्यमंत्री का कहना है कि सरकार आदिवासी समाज की समस्याओं पर गंभीरता से विचार कर रही है और जल्द ही उनके मुद्दों का समाधान निकाला जाएगा।
हालांकि, आदिवासी विधायकों की ओर से इस मामले में धैर्य खोता जा रहा है, और वे लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि धनगर समाज को एसटी का दर्जा देने से पहले आदिवासी समुदाय की चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाए।
आदिवासी विधायक और आंदोलन की रणनीति
Maharashtra Deputy Speaker Jumps Off |नरहरी झिरवाल और अन्य आदिवासी विधायकों का कहना है कि वे अपने समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। आदिवासी समाज की मांग है कि उनकी जनसंख्या के अनुपात में उन्हें सरकारी योजनाओं और नौकरियों में अधिक आरक्षण मिले। उनका यह भी कहना है कि अगर धनगर समाज को एसटी का दर्जा मिल जाता है, तो इससे आदिवासी समुदाय के लाभ कम हो जाएंगे, जो पहले से ही सीमित हैं।
यह मामला महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है, और आदिवासी विधायकों ने सरकार के खिलाफ अपना विरोध जारी रखने का निर्णय लिया है। वे इस मामले में केंद्रीय हस्तक्षेप की मांग भी कर रहे हैं ताकि धनगर समाज के मुद्दे को सही तरीके से सुलझाया जा सके।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र में आदिवासी विधायकों और सरकार के बीच चल रही यह तनातनी एक गंभीर राजनीतिक समस्या का संकेत है। आदिवासी समुदाय का संघर्ष और उनकी मांगें राज्य की राजनीति को प्रभावित कर रही हैं। नरहरी झिरवाल जैसे वरिष्ठ नेता इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, जो आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनकी सरकार किस तरह से इस समस्या का समाधान निकालती है और क्या आदिवासी समुदाय की मांगें पूरी होती हैं या नहीं।
Maharashtra Deputy Speaker Jumps Off |इस घटना ने न केवल राज्य की राजनीति में हलचल मचाई है, बल्कि समाज में भी इस मुद्दे पर चर्चा का विषय बना दिया है कि किस तरह से विभिन्न समुदायों के अधिकारों और उनके हितों का संतुलन बनाए रखा जाए।