
एक ऐसा हमला जिसने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया – Pahalgam Terror Attack
22 अप्रैल 2025, मंगलवार का दिन—एक ऐसा दिन जिसे भारत कभी नहीं भुला पाएगा। जब देश भर से आए टूरिस्ट अपने परिवारों संग कश्मीर की वादियों में सुकून तलाश रहे थे, तब इस्लामिक आतंकियों ने पहलगाम की बेसारण वैली को लहूलुहान कर दिया। यह हमला सिर्फ गोलियों का सिलसिला नहीं था, यह एक योजनाबद्ध नरसंहार था, जिसमें इंसान की मजहबी पहचान ही मौत का कारण बनी। यह Pahalgam Terror Attack न सिर्फ क्षेत्रीय, बल्कि राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया है।
हमला कैसे हुआ?
प्रत्यक्षदर्शियों और एजेंसियों के मुताबिक, 3 से 6 आतंकी AK-47 जैसे घातक हथियारों से लैस थे। उन्होंने पहले टूरिस्टों को रोककर उनका नाम पूछा, फिर कपड़े उतरवाकर उनकी धार्मिक पहचान की जांच की। जैसे ही यह तय हो गया कि वे गैर-मुस्लिम हैं, उन्हें वहीं पर गोली मार दी गई। कई चश्मदीदों ने बताया कि आतंकियों के सिर पर कैमरा लगा था जिससे वे इस नरसंहार की वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहे थे। उनकी भाषा पश्तो थी—इससे यह भी साफ होता है कि हमलावर लोकल नहीं, बल्कि पाकिस्तान से प्रशिक्षित आतंकवादी हो सकते हैं।
26 निर्दोषों की बलि
अब तक की पुष्टि में 26 निर्दोष लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश से आए पर्यटक शामिल हैं। उनमें एक महिला ने बताया कि उसके पति को सिर्फ इसलिए गोली मार दी गई क्योंकि वह हिंदू था। घटना के दृश्य इतने भयावह थे कि हर भारतीय का कलेजा कांप उठा। बच्चों के सामने उनके मां-बाप की हत्या कर दी गई। जो लोग चप्पे-चप्पे पर खुशियाँ समेटने आए थे, वे लाश बनकर लौटे।
आतंकवाद की असलियत: धर्म ही निशाना
यह हमला फिर से यह साबित करता है कि कश्मीर में जारी आतंकवाद की जड़ें रोजगार या राजनीतिक असंतोष में नहीं, बल्कि कट्टर इस्लामिक जिहाद में छिपी हैं। ये हमलावर न तो गरीब देखते हैं, न अमीर—सिर्फ धर्म देखकर गोली मारते हैं। 2019 से 2022 के बीच नौ कश्मीरी पंडितों की हत्या, रेवेन्यू विभाग के कर्मचारी राहुल भट्ट, महिला शिक्षिका रजनी बाला, बैंक मैनेजर विजय कुमार की हत्या—हर घटना एक पैटर्न का हिस्सा है।
अतीत से आज तक: लगातार हमले
यह कोई पहली बार नहीं है। 2000 में पहलगाम में हमला हुआ जिसमें 30 श्रद्धालु मारे गए। 2001 में अमरनाथ यात्रा पर हमला, 2002 में नोहन बेस कैंप पर हमला और 2017 में अनंतनाग में श्रद्धालुओं की हत्या—हर बार निशाना हिंदू यात्री रहे हैं। हर बार की तरह इस Pahalgam Terror Attack में भी धर्म ही टारगेट की कसौटी बना।
साजिश या रणनीति?
यह हमला सिर्फ एक आतंकवादी घटना नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ी साजिश दिखती है। हाल ही में पाकिस्तानी आर्मी चीफ द्वारा दिए गए भड़काऊ बयान, कश्मीर पर फिर से झूठी बातें फैलाना, ये सभी संकेत देते हैं कि पाकिस्तान की फौज एक बार फिर कश्मीर के बहाने भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है।
अब वक्त है जवाब देने का
भारत को अब सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों के भरोसे नहीं रहना चाहिए। डिप्लोमैटिक फ्रंट पर भी पाकिस्तान को हर मोर्चे पर घेरने की आवश्यकता है—चाहे वह UN हो, G20 या BRICS। भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि जो देश पाकिस्तान को फंडिंग और हथियार देते हैं, उनकी भूमिका भी उजागर हो।
अंदरूनी दुश्मनों को भी पहचानें
आतंकवाद को समर्थन देने वाली विचारधारा सिर्फ बॉर्डर पार नहीं है, बल्कि भारत के भीतर भी मौजूद है। जो लोग आतंकियों की मौत पर रोते हैं, पत्थरबाजों को मासूम बताते हैं, या आतंक को ‘आजादी की लड़ाई’ कहते हैं, उनसे सख्ती से निपटना अब वक्त की मांग है।
निष्कर्ष: अब और नहीं
कश्मीर में जो हुआ वो सिर्फ एक हमला नहीं, बल्कि एक चेतावनी है—कि अब भी अगर हम आंखें मूंदे रहे, तो हर हिंदुस्तानी खतरे में है। आतंकवाद से लड़ाई सिर्फ फौज की नहीं, बल्कि हर भारतीय की है। अब समय आ गया है कि पीओके को वापस लेकर इस कहानी का हमेशा के लिए अंत किया जाए।
जय हिंद।