IndraBharati bapu : कहानी गुजरात राज्य के एक ऐसे सिद्ध महापुरूष की जिसके लाखों अनुयायि है, जिसकी एक झलक पाने के लिए अच्छे-अच्छे VVIP, राजनेता, मंत्री, बडे अफसर जैसे लोग उनके दरबार में हाजिरी लगाते हैं।
हमारे ब्लॉग के दर्शकों को आज हम बताने जा रहे है अध्यात्म की दुनिया की एक ऐसी शख्सियत के बारे में जिन्होंने राष्ट्र और सनातन धर्म के लिए के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
परम पूज्य श्री इंद्रभारती बापू


गुजरात राज्य के सौराष्ट्र इलाके के जूनागढ़ शहर में गिरनार पर्वत की गोद में बसे श्री रूद्रेश्वर जागीर भारती आश्रम के महंत श्री इंद्रभारती बापू, जिसकी रगों में देशभक्ति, भजन, कठोर तपस्या और परिश्रम भरा हुआ है। जो एक संत विभूति होने के बावजूद भी “धर्म से पहले राष्ट्र” को विशेष प्रेम देते है, जब भी राष्ट्र की बात हो तो ऐसे मुद्दों में बापू हमेशा राष्ट्र का झंडा आगे लेकर रहते है।

जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
Indrabharti Bapu Biography in Hindi:श्री इंद्रभारती बापू का जन्म उसके ननिहाल में 25 अप्रैल 1959 चैत्र शुद बीज के दिन गुजरात के कच्छ जिले के अबडासा तहसील के विंजाण गांव में हुआ था. उसका नाम अरविंद गिरी रखा गया। माता का नाम जमुना बा और पिता का नाम शिवगिरी था। बापू का मूल गांव का नाम जखौ था जो अबडासा तहसील का एक गांव है l
बापू का जन्म सामान्य गरीब परिवार में हुआ था। परिवार की गरीब स्थिति होने के कारण बापू के माता, नानी मां और बहन विंजाण गांव से 3 किलोमीटर दूर अनाज पीसने का काम जैसी काली मजदूरी करके परिवार का गुजारा चलाते थे और इसी माहौल में बापू का बचपन गुजरा था।
मुंबई की ओर प्रस्थान और शुरुआती जीवन
जब बापू की उम्र 7 साल की थी तब जन्मभूमि छोड़ मुंबई के लिए माता-पिता के साथ रवाना हुए जहां परिवार के साथ मुंबई के घांटकोंपर इलाके में बारोट वाली कामा गली में 7*8 के कमरे में रहते थे।
जहां नजदीक में पुरुषोत्तम मेघजी कबाली घाटकोपर में लक्ष्मी नारायण मंदिर था जहां तीनों भाई महेश गिरी ,भरत गिरी और अरविंद गिरी (इंद्रभारती बापू) सुबह 7:00 बजे से 11:00 बजे तक दामोदर कुंड के पास भिक्षुक की तरह भीक्षा मांगकर जो भी खाने को मिलता था उससे दिन का गुजारा चलते थे। बापू ने घांटकोंपर की धनजी देवसी गवर्नमेंट स्कूल में सात वी कक्षा तक पढ़ाई की।

आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत और परिवार में कठिन समय
बचपन से ही आध्यात्मिक खोज के लिए उत्सुक अरविंद गिरी 14 साल की कम उम्र में महंत श्री प्रेमभारती बापू को अपना गुरु स्वीकार करके उसके पास महापुरुष की दीक्षा ली थी। अरविंद गिरी यानी कि बापू के परिवार में एक बड़ी दु:खद घटना हुई, बापू के बड़े भाई महेश गिरी का 21 साल की उम्र में निधन हुआ।
बापू के बड़े भाई वल्लभ गिरी मनोहर स्टील सेंटर में नौकरी करते थे जिसका भी एक्सीडेंट हुआ था उसके बाद उसकी करोड़रजू में नुकसान होने के कारण कोई काम नहीं कर पाते थे और बाद में उसका भी निधन हुआ था।
बापू के भाई भरत गिरी अपनी मौज में जीवन गुजारते थे वह नौकरी पर जाए भी और ना भी जाए। बापू की दीक्षा के बाद उनके परिवार में एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हो रही थी जिसके कारण उसके घर का गुजारा चलाना बहुत मुश्किल होता था और इसीलिए बापू के माताजी जमना बा की चिंता बढ़ना स्वाभाविक था।
गुरु के निर्देश पर घर लौटना
बापू के माताजी जमना बा ने बापू के गुरु महाराज श्री प्रेम भारती बापू के पास जाकर कहा कि मेरे बेटे को वापस पूर्वाश्रम में भेजिए और माता की इस बात को गुरु महाराज ने माना और बापू को वापस पूर्वाश्रम में जाने की आज्ञा दी। बापू वापस मुंबई आए और घाटकोपर इलाके में हार्डवेयर की एक दुकान में थोड़े समय के लिए नौकरी की। उसके बाद नौकरी छोड़कर किचनवेर का सामान 50 किलो का वजन अपने कंधे पर उठाकर गली गली घूमकर बेचेने जाया करते थे।
बाद में वह काम छोड़कर चैंपियन बिस्किट में डिलीवरी मैन के तौर पर ,₹150 महीने के वेतन में नौकरी की, बाद में सेल्समैन के तौर पर उनका प्रमोशन हुआ और ₹300 महीने वेतन हुआ बाद में सेल्स सुपर एडवाइजर हुए और ₹600 महीने वेतन हुआ।

गिरी भोजनालय और साधु-संतों की सेवा
बाद में बापू ने चैंपियन बिस्किट में नौकरी छोड़कर घांटकोंपर इलाके में ही “गिरी भोजनालय” नाम से एक रेस्टोरेंट शुरू किया। वहां आए साधु संतों को मुफ्त में खाना खिलाते थे। कुबेर कैटरर्स के नाम से उन्होंने कैटरर्स की दुनिया में भी अपनी किस्मत आजमाई थी। इसी तरह बापू ने परिवार का गुजारा चलाने के लिए कठोर परिश्रम किया।
मां के लिए समर्पण और आध्यात्मिक पथ पर वापसी
फिर सब कुछ अपने माताजी को अर्पण करके अपने गुरु जी के पास गए और फिर आध्यात्मिक रास्ते पर चल पड़े। गुरुजी ने कई वर्षों तक उनको महापुरुष के तौर पर रखा। बाद में सन 1997 में हरिद्वार में कुंभ में इंद्रभारती बापू ने दिगंबर दीक्षा ली। फिर वापस मुंबई आए और सनातन धर्म का प्रचार करने हेतु अनुष्ठान, साधना और तपस्या करते हुए कई विभिन्न क्षेत्रो का प्रवास किया। फिर सन 2004 में मुंबई छोड़कर वापस गुरुजी प्रेमभारती बापू के पास घांटवड आश्रम आ गए।
आपकी जानकारी के लिए श्री रूद्रेश्वर जागीर भारती आश्रम परिवार का मुख्य आश्रम जो इस परिवार की राजधानी कहो या मुख्य गादी वो घांटवड में है जो गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के कोडीनार तहसील का एक ऐतिहासिक गांव है। आश्रम के बराबर सामने श्री रुद्रेश्वर महादेव मंदिर जो भगवान शिव का मंदिर है जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, कहा जाता है कि इस शिव मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी।
रूद्रेश्वर जागीर भारती आश्रम परिवार के मुखिया सूर्यप्रकाश भारती जी महाराज थे। श्री रूद्रेश्वर जागीर भारती आश्रम परिवार भारत देश का एक बहुत बड़ा आध्यात्मिक और संत परंपरा से जुड़ा हुआ परिवार है, इस परिवार ने लाखों साधु और संत सनातन धर्म को समर्पित किए हैं।
गुरु पूर्णिमा महोत्सव: लाखों भक्तों का संगम
हर साल गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या को घांटवड आश्रम में गुरु पूर्णिमा महोत्सव होता है जिसमें भजन, भोजन और संतवाणी आयोजित होती है, जो बापू को भी बहुत पसंद हैं,जिसमें कहीं बड़े-बड़े संतवाणी कलाकार और लोक साहित्यकार आते है और लाखों लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन होता है जिसमें देश दुनिया से इंद्रभारती बापू के शिष्य समुदाय बड़ी संख्या में वहां पर पहुंचते हैं और बापू का आशीर्वाद लेते हैं। कई शिष्यों से हमने बात की है, उनका कहना है कि जब से हमने श्री इंद्रभारती बापू को गुरु बनाया है तब से हमारा जीवन धन्य हुआ है ,हमारा जीवन सफल हुआ है। बापू ने अपने जीवन में हमेशा कठोर परिश्रम, गुरुसेवा,राष्ट्रप्रेम और तपस्या को अपना जीवनमंत्र बनाया।

देशभर में आध्यात्मिक केंद्रों का संचालन
आध्यात्मिक दुनिया में जिसका साम्राज्य भारतभर में फैला हुआ है एसे श्री इंद्रभारती बापू के आश्रम देश के कहीं राज्यों में है घांटवड,जूनागढ़, द्वारका, जामनगर,कच्छ जो गुजरात स्थित बापू के आश्रम है उनके अलावा उत्तर प्रदेश,राजस्थान मुंबई, महाराष्ट्र ,बिहार, मध्यप्रदेश में भी आश्रम कार्यरत है जिसका संचालन खुद बापू ही करते हैं।
दान में मिली जमीन लौटाने की प्रेरक घटना
घटना का प्रारंभ: 27 बीघा भूमि का दान
2004 में, राजकोट के प्रसिद्ध उद्योगपति रसिकलाल एंड कंपनी के मुखिया ने अपनी 27 बीघा जमीन बापू को दान में दी। यह जमीन सासण गिर क्षेत्र में स्थित थी, जिसकी बाजार कीमत उस समय करोड़ों में थी।
श्री इंद्रभारती बापू ने इस भूमि को न केवल स्वीकार किया, बल्कि उस पर एक आश्रम और बाग-बगीचा विकसित किया। यह आश्रम साधु-संतों का निवास स्थल बन गया और वहां पर 500 से अधिक आम के पेड़ लगाए गए।
व्यापारी का आर्थिक संकट
वर्ष 2006 में, रसिकलाल एंड कंपनी के मुखिया को व्यापार में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। परिस्थितियां इतनी विकट हो गईं कि उनका परिवार कर्ज में डूब गया और संपत्तियां बेचने को मजबूर हो गया।
जब इस संकट की जानकारी श्री इंद्रभारती बापू को मिली, तो उन्होंने तुरंत इस समस्या का समाधान करने का निश्चय किया।
दान की गई भूमि वापस लौटाने का निर्णय
श्रावण मास के अंतिम दिनों में, बापू ने दान की गई जमीन पर लोकसंगीत और संतवाणी का भव्य आयोजन किया। इस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने एक ऐतिहासिक घोषणा की।
बापू ने माइक पकड़ा और ऐलान किया:
“2007 में इस भूमि पर मैंने अनुष्ठान किया था। रसिकलाल एंड कंपनी के मुखिया परिवार ने यह भूमि मुझे दान में सौंपी थी। अब, उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इसलिए, मैं यह भूमि इन्हीं को एक शिष्य के रूप में वापस लौटाता हूं।”
यह घोषणा सुनकर वहां उपस्थित हर व्यक्ति भावविभोर हो गया। यह केवल भूमि लौटाने की बात नहीं थी; यह एक संत की दया, करुणा और मानवता की अद्वितीय मिसाल थी।
मानवता और सेवा का आदर्श
श्री इंद्रभारती बापू ने इस घटना के माध्यम से यह संदेश दिया कि संत का कर्तव्य केवल अध्यात्म तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज की समस्याओं को सुलझाना और मानवता की सेवा करना भी है।
यह कार्य एक सच्चे संत की पहचान है:
- बापू ने “तेरा तुझको अर्पण” के सिद्धांत को “तेरा तुझको रिटर्न” में बदलते हुए एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया।
- यह घटना यह सिद्ध करती है कि बापू केवल एक संत नहीं हैं, बल्कि एक आधुनिक युग के प्रेरणास्त्रोत हैं।
संपत्ति का वर्तमान मूल्य और महत्व
आज की तारीख में उस भूमि की कीमत 15 करोड़ रुपये से अधिक है। लेकिन बापू के लिए उसका मूल्य केवल उसकी भौतिक संपत्ति तक सीमित नहीं था। वह भूमि एक भक्त का समर्पण थी, जिसे बापू ने जरूरत पड़ने पर उसे वापस लौटाकर मानवता का दीपक प्रज्वलित किया।
श्री इंद्रभारती बापू का संदेश
बापू हमेशा कहते हैं, “धर्म से पहले राष्ट्र।” वे न केवल एक संत हैं, बल्कि एक सच्चे राष्ट्रभक्त भी हैं। उनका जीवन संघर्ष, साधना और समाज सेवा का उदाहरण है।
निष्कर्ष
श्री इंद्रभारती बापू का जीवन त्याग, तपस्या और मानवता का प्रतीक है। उनके कार्य और विचार हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। आज उनकी प्रेरणादायक यात्रा समाज को एकजुट करने और राष्ट्र को सशक्त बनाने का संदेश देती है।
इस ब्लॉग के सभी दर्शकों को ॐ नमो: नारायण
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Bapuji lakh lakh Naman. Om namo narayan.
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